क्या अमेरिका मंदी की ओर बढ़ रहा है? ट्रंप के फैसलों का अर्थव्यवस्था पर असर

एक पुरानी कहावत है कि अगर आप किसी जोकर को महल में बिठा दें, तो वह राजा नहीं बनता, बल्कि पूरा महल ही सर्कस बन जाता है। आज के समय में एक देश की हालत कुछ ऐसी ही दिख रही है। कभी जिस देश का नाम सम्मान से लिया जाता था, जिसकी टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की दुनिया मिसाल देती थी, वह अब एक 'क्लाउन' के आने के बाद सर्कस बनता जा रहा है। यह देश और 'क्लाउन' कौन हैं, यह आप समझ ही गए होंगे। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं अमेरिका की और डोनाल्ड ट्रंप की, जिन्होंने सिर्फ 8 महीनों में दुनिया के सबसे अमीर देश को मंदी के कगार पर ला खड़ा किया है।

मुख्य बातें

  • बढ़ती बेरोजगारी: अमेरिका में बेरोजगारी दर 4 साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है, जो मंदी का एक बड़ा संकेत है।
  • धीमा जॉब क्रिएशन: नए रोजगार सृजन की गति आधी से भी कम हो गई है, जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है।
  • मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट: ट्रंप के टैरिफ के बावजूद, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर लगातार गिर रहा है और नौकरियां खत्म हो रही हैं।
  • बढ़ती महंगाई: टैरिफ और अन्य कारणों से महंगाई तेजी से बढ़ रही है, जिससे आम आदमी के लिए चीजें महंगी हो रही हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: अमेरिका की आर्थिक स्थिति का असर भारत सहित दुनिया भर के देशों पर पड़ रहा है, खासकर आईटी, फार्मा और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में।

अमेरिका की आर्थिक स्थिति: एक गंभीर विश्लेषण

अमेरिका की अर्थव्यवस्था मंदी में है या नहीं, यह जानने के लिए कई मापदंडों को देखा जाता है। हालिया आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका जल्द ही मंदी में जा सकता है। आइए, इन मापदंडों पर एक-एक करके नज़र डालते हैं।

जॉब मार्केट की हालत

सबसे पहले, जॉब मार्केट की बात करते हैं। अगस्त के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में बेरोजगारी दर 4.3% पर पहुँच गई है, जो पिछले 4 सालों में सबसे अधिक है। जून में यह 4.1% थी और साल भर से लगातार खराब होती जा रही है। अगर हम U6 बेरोजगारी दर की बात करें, जो अधिक व्यापक है, तो यह 8.1% हो चुकी है, जो पिछले महीने 7.9% थी।

नए रोजगार सृजन की बात करें तो स्थिति और भी चिंताजनक है। 2025 में मासिक जॉब एवरेज सिर्फ 85,000 रहा है, जबकि महामारी से पहले यह 1,77,000 था। अगस्त में उम्मीद थी कि 75,000 नई नौकरियां पैदा होंगी, लेकिन असल में सिर्फ 22,000 ही हुईं। यह एक बड़े देश के लिए बहुत कम है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि 53% इंडस्ट्रीज जॉब कट कर रही हैं। ऐतिहासिक रूप से, जब यह आंकड़ा 50% से ऊपर जाता है, तो यह मंदी का स्पष्ट संकेत होता है। लॉन्ग-टर्म बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ रही है; 27 हफ्तों से बेरोजगार लोगों की संख्या एक साल में 3,85,000 बढ़ गई है, जिससे कुल संख्या 1.9 मिलियन (19 लाख) हो गई है। जून 2025 में, पिछले 4 सालों में पहली बार नौकरियों में शुद्ध गिरावट देखी गई, लगभग 13,000 नौकरियों का नुकसान हुआ।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर असर

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, जिसे ट्रंप आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, की हालत भी खराब है। ट्रंप के टैरिफ के बावजूद, अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग लगातार 6 महीने से गिर रही है। इस साल अब तक 78,000 नौकरियां इस सेक्टर में खत्म हो चुकी हैं। अगस्त में अकेले 12,000 नौकरियां चली गईं। मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि मौजूदा स्थिति ग्रेट रिसेशन से भी बदतर है। टैरिफ के कारण कंपनियां हायरिंग फ्रीज कर रही हैं और मौजूदा स्टाफ को बनाए रखना भी मुश्किल हो रहा है।

बढ़ती महंगाई और फेडरल रिजर्व की दुविधा

बेरोजगारी के साथ-साथ, अमेरिका महंगाई की मार झेल रहा है। ट्रंप के टैरिफ के कारण कई चीजें महंगी हो रही हैं, जिससे महंगाई तेजी से बढ़ रही है। अगस्त में महंगाई बढ़कर 2.9% हो गई, जो जनवरी के बाद सबसे ज्यादा है। खाने-पीने की चीजों के दाम 3.2% बढ़े हैं, पुरानी कारों की कीमतों में 6% का उछाल आया है, और ऊर्जा की लागत भी बढ़ी है। कोर इन्फ्लेशन भी 3.1% पर है।

इस स्थिति में, फेडरल रिजर्व दुविधा में है। कम ब्याज दर रखने से महंगाई बढ़ सकती है, और ज्यादा रखने से अर्थव्यवस्था और धीमी हो सकती है। इसी के चलते ट्रंप और फेडरल रिजर्व के चीफ के बीच तनातनी भी चल रही है।

टैरिफ का बढ़ता बोझ

ट्रंप के टैरिफ लगातार बढ़ रहे हैं। वर्तमान में औसत टैरिफ दर 19.5% तक पहुँच चुकी है, जो 1933 के बाद सबसे अधिक है। स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ काफी बढ़ गए हैं, जिसका सीधा असर कंपनियों पर दिख रहा है। जॉन डियर जैसी कंपनी को 2025 में टैरिफ के कारण 600 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा और 238 लोगों को नौकरी से निकालना पड़ा। इससे एग्रीकल्चरल इक्विपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस मंदी के पीछे दो मुख्य कारण हैं: ट्रंप के टैरिफ और नेट इमीग्रेशन में कमी। ट्रंप अमेरिका को एक क्लोज्ड इकोनॉमी बनाना चाहते हैं, जिसके लिए वे भारी टैरिफ लगा रहे हैं और इमीग्रेशन पर रोक लगा रहे हैं, जिसमें H1B वीजा भी शामिल है।

सैम रूल: मंदी का एक विश्वसनीय संकेतक

1950 के बाद से हर मंदी की भविष्यवाणी करने वाला एक संकेतक है - सैम रूल। यह इकोनॉमिस्ट क्लॉडिया सैम द्वारा बनाया गया है। इसके अनुसार, यदि 3 महीने का औसत बेरोजगारी दर पिछले 12 महीनों के निम्नतम स्तर से 0.5% अधिक हो जाए, तो यह मंदी का संकेत है। हालांकि, वर्तमान अमेरिकी आंकड़ों पर इस रूल को लागू करना मुश्किल है, क्योंकि हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के कमिश्नर को खराब जॉब रिपोर्ट्स के कारण फायर कर दिया था, जिससे आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

वैश्विक प्रभाव

अमेरिका की आर्थिक स्थिति का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। भारत की आईटी आउटसोर्सिंग कंपनियों को कम ऑर्डर मिल सकते हैं, और फार्मा सेक्टर पर भी टैरिफ का असर दिखेगा। टेक्सटाइल, एपल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, और सी-फूड जैसे सेक्टर भी प्रभावित हो रहे हैं। ब्राजील की कॉफी, दक्षिण कोरिया, स्विट्जरलैंड, आयरलैंड जैसे देशों पर भी टैरिफ का असर पड़ रहा है।

यह स्पष्ट है कि ट्रंप के फैसले न केवल अमेरिका को, बल्कि पूरी दुनिया को आर्थिक मुश्किलों में डाल सकते हैं। अमेरिका के बड़े बिजनेसमैन भी इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं। भारतीय बाजार भी पिछले कुछ दिनों से लगातार गिर रहा है और अस्थिर है।

यह जानकारी डराने के लिए नहीं, बल्कि आपको वर्तमान आर्थिक स्थिति से अवगत कराने और तैयार रहने के लिए है। इन नंबर्स को ट्रैक करते रहें और अपनी तैयारी करें। अगर स्थिति सुधरती है तो यह अच्छी बात है, लेकिन जिस तरह से नए टैरिफ आ रहे हैं, मुश्किलें नजर आ रही हैं।

आपकी क्या राय है अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर? और अगर मंदी आती है, तो एक निवेशक के तौर पर आप कैसे तैयार हैं? नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।