PARA SFs, Indian Army, Weapons & Dangerous Missions ft. Col. Shivender Kanwar | FO 239 Raj Shamani

राज शमानी के पॉडकास्ट में कर्नल शिवेंद्र कंवर ने भारतीय सेना और विशेष बलों के बारे में कई बातें बताईं। उन्होंने पैरा एसएफ की कठिन चयन प्रक्रिया, अमेरिकी सेना से तुलना, और खतरनाक मिशनों के अनुभव साझा किए। यह बातचीत सेना के जीवन, बलिदान और देश के प्रति समर्पण की गहरी समझ देती है।

भारतीय और अमेरिकी सेना: उपकरण और तुलना

कर्नल कंवर ने बताया कि उपकरणों के मामले में अमेरिकी सेना हमसे बहुत आगे है। उनके पास सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे बड़े विमान और लॉकहीड मार्टिन, बोइंग जैसी बड़ी कंपनियाँ हैं। उनके पास हर चीज की बहुत ज्यादा मात्रा होती है। अगर हमारे पास एक हेलमेट है, तो उनके पास चार होंगे। उनकी नाइट विजन डिवाइस भी बहुत महंगी होती हैं।

अमेरिकी सेना के हथियार भी बहुत खास होते हैं। जैसे, हैकलर एंड कोच 416 राइफल को वे कमरे में घुसने के लिए छोटा कर सकते हैं। इसका मतलब है कि वे बैरल को काट देते हैं और अंदर की चीजें बदल देते हैं। हमारे भारतीय सैनिक कई बार अपना सामान खुद खरीदते हैं। कर्नल कंवर ने बताया कि उन्होंने अपनी किट पर 14 लाख रुपये खर्च किए थे।

हालांकि, कर्नल कंवर ने यह भी कहा कि भारतीय सेना अमेरिकी सैनिकों को 40 डिग्री गर्मी में भी दौड़ाकर थका देती है। अमेरिकी सैनिक पेशेवर होते हैं, लेकिन भारतीय सेना का अपना तरीका है। उन्होंने बताया कि अमेरिकी नेवी सील ने 1995 में 'डक ड्रॉप' किया था, जबकि भारतीय नौसेना ने इसे 2018 में किया।

विशेष बल: शीर्ष इकाइयाँ और हथियार

कर्नल कंवर ने दुनिया के कुछ खास विशेष बलों के बारे में बताया।

प्रमुख इकाइयाँ

  • एसएएस (स्पेशल एयर सर्विस) और एसबीएस (स्पेशल बोट सर्विस) - यूके: कर्नल कंवर के अनुसार, ये सबसे पहले थे और इनके ऑपरेशन बहुत अच्छे होते हैं।
  • सील टीम सिक्स या डेल्टा फोर्स - अमेरिकी: ये दूसरे नंबर पर आते हैं।
  • जर्मन जीएसजी 9 और स्पेट्सनाज़: ये भी अच्छे विशेष बल हैं।

प्रमुख हथियार

विशेष बल कई तरह के हथियार इस्तेमाल करते हैं:

  • व्यक्तिगत हथियार: इसमें इजरायली टेवर असॉल्ट राइफल (30 राउंड मैगजीन वाली), एके सीरीज (एके-47, एके-56, एके-74), उजी और माइक्रो उजी जैसी सबमशीन गन, और कार्ल वाल्थर, ग्लॉक जैसी पिस्तौल शामिल हैं।
  • सहायक हथियार: जीपीएमजी मशीन गन, नेगेव और मिनी-मी (बेल्जियम की बेल्ट-फेड मशीन गन) जैसे हथियार होते हैं।
  • भारी हथियार: रॉकेट लॉन्चर, फ्लेम थ्रोअर और सी90 डिस्पोजेबल आरएल भी होते हैं।
  • स्नाइपर राइफलें: साको और एम14 जैसी लंबी दूरी की स्नाइपर राइफलें भी इस्तेमाल होती हैं।
  • निगरानी उपकरण: नाइट विजन (हेलमेट और हथियार पर लगने वाले), होलोग्राफिक साइट्स (रेड डॉट), हैंडहेल्ड थर्मल इमेजर, दीवारों के आर-पार देखने वाले रडार, ड्रोन, दूरबीन और स्पॉटिंग स्कोप जैसे उपकरण होते हैं।
  • संचार उपकरण: लंबी दूरी के एचएफ रेडियो सेट भी होते हैं, जिनसे कश्मीर से मुंबई तक बात की जा सकती है।

कर्नल कंवर के पसंदीदा हथियार

कर्नल कंवर ने अपनी तीन पसंदीदा बंदूकें बताईं:

  • हैकलर एंड कोच एचके416: यह बेल्जियम का हथियार है और दुनिया के सभी विशेष बलों के पास होता है, लेकिन भारत में यह आम नहीं है। यह बहुत स्थिर और तेज फायर करने वाली बंदूक है।
  • एम4 कार्बाइन: यह भी एक अच्छा हथियार है और इसके नए वर्जन आ रहे हैं। भारत की कुछ यूनिट्स के पास यह है।
  • एके-47: यह कम रखरखाव वाली, मजबूत और सस्ती बंदूक है। इसे पानी में भी डाल दो तो भी यह काम करती है। यह रूस में बनी थी, लेकिन अब भारत में भी एके-203 अमेठी में बन रही है।

विशेष बलों की गहन चयन प्रक्रिया

कर्नल कंवर ने बताया कि वह हमेशा से युद्ध और ऑपरेशन का अनुभव चाहते थे, इसलिए उन्होंने सेना में अधिकारी बनने का फैसला किया। उन्होंने 2002 में अपनी पहली प्रोबेशन के लिए खुद को तैयार किया।

प्रोबेशन तीन महीने की होती है, जिसमें शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मुश्किल टेस्ट होते हैं।

प्रमुख बातें

  • शारीरिक टेस्ट: इसमें 20 किलो वजन और हथियार के साथ 10 से 40 किलोमीटर तक की स्पीड मार्च शामिल है, जिसे 5 घंटे में पूरा करना होता है।
  • भागने और बचने के अभ्यास: इसमें सैनिकों को बिना किसी सामान के 100 किलोमीटर दूर छोड़ दिया जाता है। उन्हें चोरी करके या लिफ्ट लेकर वापस आना होता है। पकड़े जाने पर उन्हें युद्धबंदी जैसा व्यवहार मिलता है।
  • नींद की कमी: 90 दिनों की प्रोबेशन में सैनिकों को केवल 2-3 घंटे की नींद मिलती है, और कई बार तो एक हफ्ते तक बिना सोए काम करना पड़ता है। इसे 'हेल वीक' कहते हैं।
  • मानसिक मजबूती: यह टेस्ट शारीरिक से ज्यादा मानसिक होता है। जो लोग इसे पूरा करते हैं, वे बहुत मजबूत बन जाते हैं।
  • कम चयन दर: 100 में से केवल 5 से 20 लोग ही चुने जाते हैं।
  • हथियार का अभ्यास: सैनिकों को आँखें बंद करके 15 सेकंड में एके-47 को खोलना और जोड़ना सिखाया जाता है।
  • ग्लास खाने की रस्म: विशेष बलों में एक रस्म होती है, जिसमें ग्लास के किनारे को दांतों से तोड़कर खाया जाता है। कर्नल कंवर ने भी एक बार यह किया था।
  • शरीर की घड़ी बदलना: ऑपरेशन के लिए शरीर की घड़ी बदल दी जाती है, दिन शाम 7 बजे से शुरू होता है और रात में काम होता है।
  • ऊर्जा के लिए: प्रोटीन शेक नहीं, बल्कि चाय और हलवा जैसी चीजें खाई जाती हैं, क्योंकि एक दिन में 7000-8000 कैलोरी जलती हैं।

खतरनाक मिशन और युद्ध की वास्तविकताएँ

कर्नल कंवर ने अपने कुछ खतरनाक मिशनों के बारे में बताया।